10 motivational stories in hindi

10 Motivational stories hindimei जो जीवन बदल दे

अगर आप motivational stories in hindi ढूंढ रहे है तो बिल्कुल सही साइट पर आये हैं। मोटीवेशनल स्टोरी पढ़ने या सुनने के बाद किसी भी कार्य को करने के लिए काफी उत्साह मिलता है। आज हम इस वेबसाइट यानी hindimei.tech पर ऐसी दस hindi motivational stories लाये है, जिससे आपकी जिंदगी बदल जायेगी। या यूँ कहे की इन kahaniyon से आपके सोचने और चीजों को देखने का नजरिया बदल जायेगा। तो आईये पढ़ते है Motivational stories hindi mei. 
 
 
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Hindi motivational stories

Insaan ki kimat motivational story in hindi

एकबार एक टीचर क्लास में पढ़ा रहे थे। बच्चों को कुछ नया सिखाने के लिए टीचर ने जेब से 100 रुपये का एक नोट निकाला। अब बच्चों की तरफ वह नोट दिखाकर कहा – क्या आप लोग बता सकते हैं कि यह कितने रुपये का नोट है ?
 सभी बच्चों ने कहा – “100 रुपये का”
 टीचर – इस नोट को कौन कौन लेना चाहेगा ? सभी बच्चों ने हाथ खड़ा कर दिया।
 अब उस टीचर ने उस नोट को मुट्ठी में बंद करके बुरी तरह मसला जिससे वह नोट बुरी तरह कुचल सा गया। अब टीचर ने फिर से बच्चों को नोट दिखाकर कहा कि अब यह नोट कुचल सा गया है अब इसे कौन लेना चाहेगा ?
 सभी बच्चों ने फिर हाथ उठा दिया।
 अब उस टीचर ने उस नोट को जमीन पर फेंका और अपने जूते से बुरी तरह कुचला। फिर टीचर ने नोट उठाकर फिर से बच्चों को दिखाया और पूछा कि अब इसे कौन लेना चाहेगा ?
 सभी बच्चों ने फिर से हाथ उठा दिया।
 अब टीचर ने कहा कि बच्चों आज मैंने तुमको एक बहुत बड़ा पढ़ाया है। ये 100 रुपये का नोट था, जब मैंने इसे हाथ से कुचला तो ये नोट कुचल गया लेकिन इसकी कीमत 100 रुपये ही रही, इसके बाद जब मैंने इसे जूते से मसला तो ये नोट गन्दा हो गया लेकिन फिर भी इसकी कीमत 100 रुपये ही रही।
 ठीक वैसे ही इंसान की जो कीमत है और इंसान की जो काबिलियत है वो हमेशा वही रहती है। आपके ऊपर चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाएँ, चाहें जितनी मुसीबतों की धूल आपके ऊपर गिरे लेकिन आपको अपनी कीमत नहीं गंवानी है। आप कल भी बेहतर थे और आज भी बेहतर हैं।

Sabse bada khajana motivational story hindimei

एक लोहार था। उसने एक बढ़ई के लिए हथोडा बनाया। हथोडा बहुत ही सुन्दर और मजबूत बना था।हथोड़े की सुन्दरता और मजबूती देख बढ़ई ने सोचा क्यों न लोहार से एक हथोडा और बनवा लूँ।
 बढ़ई लोहार के पास गया और बोला, “तुम मेरे लिए एक हथोडा और बना दो लेकिन इस बार जो हथोडा बनाना वह पहले वाले हथोड़े से भी ज्यादा सुन्दर होना चाहिए और इसके लिए में तुम्हें मुह माँगा इनाम दूंगा।
 लोहार नें बढ़ई की बात सुनी और विनम्रता पूर्वक कहा, “नहीं यह तो नहीं हो पाएगा”
 बढ़ई, लोहार की बात सोनकर आश्चर्यचकित हुआ औ बोला, “आखिर क्यों ? तुम्हें तो तुम्हारा मुह माँगा इनाम मिलेगा| फिर तुम इसके लिए मना क्यों कर रहे हो।
 लोहार नें कहा, “दाम की बात नहीं है में जब भी कोई चीज बनता हूँ पूरी योग्यता और लगन के साथ बनता हूँ। आपके लिए हथोडा बनाने के लिए मेने पूरी लगन और महनत से काम किया है। अब आप ही बताइए में इस से आचा और सुन्दर हथोडा कैसे बना सकता हूँ।
 अगर में आपकी बात मन लेता हूँ और कहता हूँ की हाँ में यह कम कर सकता हूँ तो इसका मतलब यह होगा की पहले वाले हथोड़े को बनाने में मैंने कोई कसार बाकि रख दी थी इसलिए इस हथोड़े को में और भी ज्यादा सुन्दर बना सकता हूँ लेकिन यह तो सत्य नहीं है| मेने आपके लिए पहले ही पूरी ईमानदारी और लगन के साथ हथोड़े का निर्माण किया है।
 इसलिए कहने का तात्पर्य यह है की किसी के लिए भी कोई भी कार्य करो तो उसे पुरे तन-मन से, महनत से करो। उसे अच्छे से अच्छा बनाने में कोई भी कसार बाकि मत छोड़ो।

Do bachhon ki kahani in hindi

यह कहानी है दो बच्चों की जो एक गाँव में रहते थे। बड़ा बच्चा 10 साल का था और छोटा 7 साल का। दोनों हमेशा एक दुसरे के साथ रहते, एक दुसरे के साथ खेलते और एक दुसरे के साथ ही घूमते। एक दिन दोनों खेलते-खेलते गाँव से थोड़ा दूर निकल आए।अचानक खेलते-खेलते 10 साल के बच्चे का पैर फिसल गया और वह कुए में गिर गया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा। अपने दोस्त की आवाज़ सुनकर जब छोटे बच्चे को इस बात का पता चला तो वह बहुत घबराया। उसने अपने आस-पास देखा और मदद के लिए चिल्लाया। लेकिन वहां आसपास कोई नहीं था जो उसकी मदद कर सकता था।
 अचानक उसकी नज़र पास ही पड़ी एक बाल्टी पर पड़ी, जिस पर एक रस्सी बंधी थी। उसने बिना कुछ सोचे वह रस्सी कुए में फेकी और अपने दोस्त को उस रस्सी को पकड़ने को बोला। अगले ही पल वह 7 साल का बच्चा उस 10 साल के बच्चे को पागलों की तरह कुए से बाहर निकालने के लिए खिंच रहा था| उस छोटे से बच्चे ने अपने दोस्त को कुए से बहार निकालने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। आखिरकार वह बच्चा अपने दोस्त को बचाने में कामियाब हुआ और उसने अपने दोस्त को कुए से बाहर निकाल लिया।
 लेकिन उन्हें असली डर तो इस बात का था की जब वो गाँव जाएँगे तो उन्हें बहुत मार पड़ने वाली है। खैर, दोनों डरते-डरते गाँव पहुंचे और उन्होंने गाँव वालों को खेलते-खेलते कुए में गिरने और रस्सी के सहारे छोटे बच्चे द्वारा बड़े बच्चे को बाहर निकालने वाली पूरी बात बता दी। लेकिन गाँव वालों ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया और हसने लगे कि आखिर एक 7 साल का बच्चा एक 10 साल के बच्चे को रस्सी के सहारे कुए से बहार कैसे निकाल सकता है।
 लेकिन वहां मौजूद एक बुजुर्ग ने उन बच्चों की बातों का भरोसा कर लिया। उन्हें सब “करीम चाचा” कहते थे। करीम चाचा गाँव के सबसे समझदार बुजुर्गों में से एक थे। गाँव वालों को जब करीम चाचा के बच्चों की बात पर विश्वास करने की बात पता चली तो सब इक्कठे होकर करीम चाचा के पास पहुंचे और बोले “चाचा! हमें तो बच्चों की बात पर यकीन नहीं हो रहा है, आप ही बता दो की ऐसा कैसे हो सकता है। गाँव वालों की बात सुनकर करीम चाचा बोले, “बच्चे बता तो रहें हैं उन्होंने यह कैसे किया। बच्चे ने कुए में रस्सी फेंकी और दुसरे बच्चे को ऊपर खीच लिया।
 गाँव वालों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद करीम चाचा मुस्कुराए और बोले, “सवाल ये नहीं है की बच्चे ने यह कैसे किया, सवाल यह है की वह यह कैसे कर पाया।और इसका सिर्फ एक ज़वाब है की जिस वक़्त वह बच्चा यह कर रहा था उस वक़्त उसको वहां यह बताने वाला कोई नहीं था की तू यह नहीं कर सकता।यहाँ तक की वह बच्चा खुद भी नहीं।

Taimur aur chinti मोटीवेशनल कहानी

तैमुर के दुश्मनों ने तैमुर का पिचा किया तो वह घने जंगलों में भाग गया और पहाड़ों में एक खंडहर में शरण ले ली। थकावट के कारण वह वहीँ लेट गया।
 तभी लेते लेते उसकी नज़र एक चींटी पर पड़ी। वह देखता है की एक चींटी एक चावल का दाना मुह में दबाकर दिवार पर चढ़ रही है, फिर वह दाना निचे गिर जाता है।
 अगली बार चींटी फिर उस दानें को लेकर दिवार पर चढ़ती है और इस बार वह खुद निचे गिर जाती है। ऐसा कई बार होता है कभी वह चावल का दाना निचे गिर जाता है और कभी वह चींटी।
 तैमुर लेटा-लेटा उस चींटी के प्रयासों को गिनता रहता है। वह चींटी 16 बार चावल के दानें को ले जाने में असफल होती है लेकिन 17 वि बार वह उस दानों को ले जाने में सफल हो जाती है।
 तभी तैमुर को झटका लग और वह फिर से अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए युद्ध क्षेत्र में आ गया। वह लगातार अपने दुश्मनों से लड़ता रहा और एक दिन सफ़र हो गया।
 इसलीये दोस्तों, असफलता से हमें घबराना नहीं चाहिए वरन असफलता से सिख लेकर हमें आगे बढ़ना चाहिए। इसी लिए कहा गया है गिरो, उठा और आगे बढ़ो।

Jhut fareb ka mahol हिंदी कहानी

एक बार एक राजा ने अपने राज्य के सबसे कुशल कारीगर को महल में बुलाया। राजा कारीगर की कला से बहुत प्रभावित था। उसने कारीगर को दरबार में बुलाया और कहा, “तुम हमारे लिए राज्य का सबसे सुदर महल बनाओ। हमारे पास धन को कोई कमी नहीं है तुम जितना धन मांगोगे उतना तुम्हे मिलेगा।
 कारीगर कुशल तो था लेकिन उसे अपनी कला का घमंड आ चूका था। सब जगह से अपने काम की तारीफ सुनकर अब उसके मन में कामचोरी और आलस्य की प्रवति आ चुकी थी।
 खैर, कारीगर महाराज की आज्ञा पा कर अपने काम में जुट गया। लेकिन थोड़े ही दिन बाद उसके मन में विचार उठा की क्यों न रद्दी, घटिया किस्म का माल लगाकर क्जल्दी से जल्दी महल का क्काम समाप्त कर के मोटा मुनाफा कमा लिया जाए। और उसने यही किया।
 कारीगर ने घटिया किस्म का माल लगाकर महल की भुरभुरी दीवारें कड़ी कर दी।कारीगर ने बाहर से महल को सुन्दर साज सज्जा से चमका दिया लेकिन अन्दर से महल में क्जच्चा माल लगा था। थोड़े ही दिन में आकर्षक सुन्दरता वाला, सोने सी चमक-दमक वाला सुन्दर सा महल तैयार हो गया।
 महल खड़ा करने के बाद अक्रिगर राजा की सेवा में पहुंचा और राजा को महल के बन्नने की सुचना दी। राजा अगले ही दिन महल का निरिक्षण करने के लिए पहुंचे। महल को देख राजा बहुत ही प्रभावित हुए।महल बहुत ही आकर्षक और सुन्दर लग रहा था।
 राजा ने कारीगर की बहुत प्रशंशा की और कहा, “में तुम्हारी कुशलता से बहुत प्रभावित हूँ। इतने सुन्दर महल निर्माण के लिए तुम्हे जो भी इनाम दिया जाए वो कम है। में सोच रहा हूँ इस अद्भुत कार्य के लिए तुम्हें क्या इनाम दिया जाए। फिर थोडा सोच विचार कर महाराज मुस्कुराए और बोले, “लो तुम्हें यही यही महल पुरूस्कार में देता हूँ।”
 महाराज की बात सुनकर कारीगर हतप्रभ रह गया। उसे क्या मालूम था की जिस महल को वह घटिया माल से बना रहा है वही महल एक दिन उसे इनाम में मिल जाएगा।
 राजा महल का निरिक्षण कर और महल को कारीगर को इनाम में दे ककर चले गए। कारीगर अपने किए पर मुह छिपा कर रोने लगा।
 इनाम के लालच में कारीगर का बनाया गया खोखला महल उसी के हत्थे चढ़ गया।

Hathi aur rassi Motivational kahani in hindi

एक व्यक्ति रास्ते से गुजर रहा था कि तभी उसने देखा कि एक हाथी एक छोटे से लकड़ी के खूंटे से बंधा खड़ा था।व्यक्ति को देखकर बड़ी हैरानी हुई कि इतना विशाल हाथी एक पतली रस्सी के सहारे उस लकड़ी के खूंटे से बंधा हुआ है।
 ये देखकर व्यक्ति को आश्चर्य भी हुआ और हंसी भी आयी। उस व्यक्ति ने हाथी के मालिक से कहा – अरे ये हाथी तो इतना विशाल है फिर इस पतली सी रस्सी और खूंटे से क्यों बंधा है ? ये चाहे तो एक झटके में इस रस्सी को तोड़ सकता है लेकिन ये फिर भी क्यों बंधा है ?
 हाथी के मालिक ने व्यक्ति से कहा कि श्रीमान जब यह हाथी छोटा था मैंने उसी समय इसे रस्सी से बांधा था। उस समय इसने खूंटा उखाड़ने और रस्सी तोड़ने की पूरी कोशिश की लेकिन यह छोटा था इसलिए नाकाम रहा। इसने हजारों कोशिश कीं लेकिन जब इससे यह रस्सी नहीं टूटी तो हाथी को यह विश्वास हो गया कि यह रस्सी बहुत मजबूत है और यह उसे कभी नहीं तोड़ पायेगा इस तरह हाथी ने रस्सी तोड़ने की कोशिश ही खत्म कर दी।
 आज यह हाथी इतना विशाल हो चुका है लेकिन इसके मन में आज भी यही विश्वास बना हुआ है कि यह रस्सी को नहीं तोड़ पायेगा इसलिए यह इसे तोड़ने की कभी कोशिश ही नहीं करता। इसलिए इतना विशाल होकर भी यह हाथी एक पतली सी रस्सी से बंधा है।
 दोस्तों उस हाथी की तरह ही हम इंसानों में भी कई ऐसे विश्वास बन जाते हैं जिनसे हम कभी पार नहीं पा पाते। एकबार असफल होने के बाद हम ये मान लेते हैं कि अब हम सफल नहीं हो सकते और फिर हम कभी आगे बढ़ने की कोशिश ही नहीं करते और झूठे विश्वासों में बंधकर हाथी जैसी जिंदगी गुजार देते हैं।

Har acche kaam me sahayta karo हिंदीमे मोटिवेशंन

रावन द्वारा सीता हरण के बाद भगवन राम रवां से युद्ध करने के लिए और लंका तक पहुचने के लिए सागर पर पुल बंधवा रहे थे। भालू, बन्दर बड़े बड़े पत्थर उठा कर समुद्र में डाल रहे थे।
 तभी भगवान् राम की दृष्ठि एक गिलहरी पर पड़ी। गिलहरी बालू में लोटती जिससे उसके शारीर पर बालू के कुछ कण चिपक जाते थे। फिर वह उन चिपके हुए कानों को पुल पर जमें हुए पत्थरों पर गिरा देती थी।
 यह देखकर भगवान् राम आश्चर्यचकित हुए और बड़े प्यार से गिलहरी के पास जाकर उसे हाथ में उठाया और उससे पूछा,“यह तुम क्या कर रही हो”
 प्रभु राम का स्नेह पाकर गिलहरी बोली, “इस पुनीत कार्य में बन्दर-भालू तो बड़े-बड़े पत्थर उठा कर पुल का निर्माण कर रहें हैं। में छोटी सी गिलहरी भला इतने बड़े पत्थर कैसे उठा सकती हूँ इसलिए बालू के छोटे-छोटे कण उठा कर इस कार्य में अपना योगदान दे रही हूँ।
 आप एक आचे कम के लिए निकले है और अच्छे कार्य में तो सहयोग करना ही चाहिए।
 गिलहरी की बात सुनकर भगवान् राम बहुत प्रसन्न हुए। कहा जाता है की गिलहरी के कार्य से प्रसन्न होकर भगवान् राम ने स्नेहता से उसके शारीर पर अपना हाथ फेरा था और आज भी गिलहरी के शरीर पर जो धारियां दिखाई देती है वह भगवान् राम की उँगलियों के निशान ही है।इसलिए हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिए की हमारा योगदान कितना बड़ा है। किसी भी अच्छे कायर के लिए जितना और जैसा भी हम कर सकते हैं वह हमें अवश्य करना चाहिए।

लगन का फल मोटीवेशनल स्टोरी हिंदी मे

उस बालक का मन विद्यालय में नहीं लगता था। विद्यालय में वह और छात्रों के द्वारा मंदबुद्धि कहलाता था। कक्षा में भी वह बालक सबसे पीछे रहता था , उसके अध्यापक भी उससे नाराज़ रहते थे। क्योकि उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी नीचे था। कक्षा में भी उसका प्रदर्शन हमेशा निराशाजनक ही होता था। अपने दोस्तों एवं सहपाठियो के बीच वह उपहास का विषय था। विद्यालय में वह जब की प्रवेश करता उस बालक पर चारों ओर से व्यंग और बाणो की बौछार सी होने लगती। इन सब बातों से परेशान हो कर , तंग आकर विद्यालय जाना ही छोड़ दिया।
 एक दिन वह बालक मार्ग पर यूँ ही चलता हुआ जा रहा था। चलते हुए उसे ज़ोरो की प्यास लगी, वह इधर – उधर अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी तलाशने लगा। अंत में उसे एक कुआँ दिखाई दिया , वे वहाँ गया और अपनी प्यास बुझाई। वह चलता – चलता काफी थक गया था , इसीलिए पानी पीने के बाद वही बैठ गया , तभी उसकी नज़र पत्थर पर पड़े , उस निशान पर गयी. जिस पर बार – बार कुँए से पानी खींचने के कारण रस्सी के निशान पड़ गए थे। वह मन ही मन सोचने लगा की जब बार – बार कुँए से पानी खींचने से पत्थर पर निशान पड़ सकते है तो निरंतर अभ्यास से मुझे भी विद्या आ सकती सकती है।
 उसने अपने इस विचार को गांठ बांध लिया और पुनः विद्यालय जाना शुरू कर दिया। उसकी लगन देख कर अध्यापको ने भी उसका भरपूर सहयोग किया। उसने मन लगा कर कठिन परिश्रम किया। कुछ सालो बाद यही बालक महान विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुए , जिन्होंने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथो की रचना की।
 इस कहानी का अर्थ – अगर धैर्य , लगन और परिश्रम से कार्य किया जाये तो उन पर विजय प्राप्त कर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। सामान्यता यह होता है की लोग बड़ी उत्सुकता से काम तो शुरू कर देते है परन्तु धैर्य खो देते है। लेकिन जो लोग लगन से काम करते रहते है। उन्हें सफलता अवश्य मिलती है।

नीव का पत्थर hindi kahani

लाल बहादुर श्रास्त्री बड़े ही हसमुख स्वाभाव के थे। लोग प्रायः ही उनसे उनके हसमुख स्वाभाव और निःस्वार्थ सेवा भावना के लिए प्रभावित हो जाया करते थे।
 एक बार लाल बहादुर श्रास्त्री को लोक सेवा मंडल का सदस्य बनाया गया। लेकिन लाल बहादुर श्रास्त्री बहुत संकोची थे वे कभी नहीं चाहते थे की उनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रशंशा और स्वागात करे। एक बार शास्त्री जी के मित्र नें उनसे पूछा, “शास्त्री जी! आप अख़बारों में नाम छपवाने में इतना परहेज़ क्यों करते हैं।
 शास्त्री जी मुस्कुराए और बोले, “लाला लाजपत राए जी ने मुझे लोक सेवा मंडल के कार्यभार को सोंपते हुए कहा था की, लाल बहादुर ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं। एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन्हें दुनियां देखती है और प्रशंशा करती है।
 और दुसरे ताजमहल की नीव में लगे हैं जो दीखते नहीं और जिनके जीवन में अँधेरा ही अँधेरा है। लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा किए हुए है।
 लालजी के ये शब्द मुझे हमेशा याद रहते हैं और में नीव का पत्थर बना रहना चाहता हूँ।
 इसलिए हमें भी ज़िन्दगी में दिखावे से बचकर वो कार्य करना चाहिए जो असल में ज़रूरी है।

Koi chota bada nahi hindi me motivational कहानी

एक छोटे से कस्बे में शंभू शिल्पकार रहता था। वह पहाड़ों से बड़े-बड़े पत्थर तोड़कर लाता और उसे आकार देकर मूर्तियां बनाता। इस रोजगार में मेहनत बहुत ज्यादा थी , आमदनी कम।
 दिन भर धूप पसीने में काम करते हुए शंभू पत्थर तोड़ता। यह काम उसके पूर्वज भी किया करते थे।
 शंभू काम करते हुए सोचता है , यह छोटा-मोटा काम करने से क्या फायदा? ठीक से दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। मैं बड़ा आदमी बन जाऊं तो काम भी ज्यादा नहीं करना होगा और बैठकर आराम से ऐस मौज करूंगा।
 एक रोज वह ऐसे नेता को देखता है , जिसके आगे पीछे हमेशा भीड़ रहती है। उसको हाथ जोड़कर प्रणाम करने वाले सैकड़ों लोग खड़ी रहती हैं। शंभू ने नेता बनने की ठान ली , कुछ दिनों में वह नेता बन गया।
 नेता बनने के बाद जब वह एक रैली कर रहा था , धूप काफी तीव्र थी। धूप की गर्मी वह सहन नहीं कर पाया और बेहोश होकर वहीं गिर गया।
 होश आने पर उसने पाया वह बिस्तर पर लेटा हुआ है।
 बिस्तर पर लेटे लेटे वह सोचने लगा कि नेता से बलवान वह सूर्य है जिसकी गर्मी कोई सहन नहीं कर पाता। मुझे अब सूर्य बनना है। कुछ दिनों बाद वह सूर्य भी बन गया।
 शंभू अब गर्व से चमकता रहता और भीषण गर्मी उत्पन्न करता। तभी उसने देखा एक मजदूर खेत में आराम से काम कर रहा है। उसने गर्मी और बढ़ाई मगर मजदूर पर कोई फर्क नहीं पड़ा। विचार किया तो उसे मालूम हुआ। ठंडी-ठंडी हवा पृथ्वी पर बह रही है , तब शभु ने विचार किया। हवा बनकर मैं और शक्तिशाली बन जाऊंगा , कुछ दिनों बाद वह हवा बन गया।
 हवा बनकर वह इतराता-इठलाता इधर-उधर घूमने लगा।
 अचानक उसके सामने विकराल पर्वत आ गया , जिसके पार वह नहीं जा सका। तब उसने सोचा मैं इससे भी बड़ा पर्वत बनकर रहूंगा। कुछ समय बाद वह विशालकाय पर्वत बन गया।
 अब उसे अपने आकार और शक्तिशाली होने का घमंड हो गया।
 कुछ दिनों बाद उसे छेनी-हथौड़ी की आवाज परेशान करने लगी।
 वह काफी परेशान हो गया , उसकी आवाज इतनी कर्कश थी जो उसके शरीर को तोड़े जा रही थी।
 आंख खुली तो उसने देखा एक शिल्पकार उसके पर्वत को तोड़ रहा है।
 लेकिन अब वह मजदूर नहीं बनना चाहता था। वह काफी परेशान था , नींद खुली तो उसने आईने में पाया – वह जो विशाल पर्वत को भी तोड़ने का साहस रखता है वह तो स्वयं वही है।

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